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अतिरिक्त लोक अभियोजक का तर्क है कि आरोपी ने अपने ही घर के भीतर अपनी पत्नी को जिंदा जलाकर उसकी मृत्यु कारित की है। ऐसी स्थिति में आरोपी का कृत्य विरले से विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है। आरोपी को मृत्यु दंड से दंडित किया जाएं। आरोपी की ओर से अधिवक्ता का तर्क है कि आरोपी के विरूद्ध अभियोजन आरोप प्रमाणित करने में असफल रहा है। आरोपी की ओर से अधिवक्ता का तर्क है कि आरोपी घटनास्थल पर मौजूद नहीं था और न ही उसे अपराध कारित करते हुए किसी भी व्यक्ति द्वारा देखा गया। आरोपी की दोनों अवयस्क पुत्रियां हैंडपम्प पर पानी लेने गई थी और उनके सामने कोई घटना नहीं हुई। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्वयं दरवाजा तोड़फोड़ कर कमरे के भीतर प्रवेश किया है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि मौके पर केवल मृतिका दुर्गादेवी ही घर के भीतर थी और आपस में हुए झगड़े को आधार बनाकर मृतिका ने स्वयं के ऊपर घासलेट डालकर आग लगा ली। यह तर्क भी दिया गया कि मृतिका पूर्व में भी आत्महत्या करने का प्रयास कर चुकी थी और स्वयं कमजोर मानसिकता वाली महिला थी। जहां तक अन्वेषण के दौरान की गई कार्यवाहियों का संबंध है, आरोपी की ओर से अधिवक्ता का निवेदन है कि पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही नियमित तौर पर होने वाली कार्यवाहियों के अंतर्गत है और इस आधार पर आरोपी के विरूद्ध कोई निष्कर्ष अंकित नहीं किया जा सकता। आरोपी को दोषमुक्त करने का निवेदन किया गया। अभिलेख पर उपलब्ध समस्त दस्तावेजों का परिशीलन किया गया। साक्षीगण की ओर से प्रस्तुत मौखिक साक्ष्य का समग्र अवलोकन और परिशीलन किया गया। स्वीकृत तथ्यों के अतिरिक्त जो तथ्य अभिलेख पर प्रकट है उनके अंतर्गत दिनांक 22.05.2020 को सोरमबाई की जानकारी के आधार से अन्वेषणकर्ता द्वारा दिन के 15:45 बजे दो देहाती नालिसी क्रमश: प्र.पी.-1 और प्र.पी.-2 दर्ज की गई। यह तथ्य अविवादित है कि आरोपी देवनारायण और उसकी पत्नी दुर्गादेवी अपने बच्चों के साथ परिवार सहित ग्राम गोविंदपुरा में निवास करते थे। यह तथ्य भी अविवादित है कि मृत्यु के समय मृतिका के शरीर पर चांदी की रकमें मौजूद थी जिसे पुलिस द्वारा मृतिका के भाई रंजीतसिंह की सुपुर्दगी में दिया गया है। आपराधिक प्रकरण के विचारण में प्राय: मौखिक साक्ष्य एवं चिकित्सकीय साक्ष्य महत्वपूर्ण स्थान रखते है और दोनों प्रकृति की साक्ष्य में अंतर्विरोध की परिस्थितियां भी पायी जाती है। ऐसी स्थिति में साक्ष्य का मूल्यांकन अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। चिकित्सा क्षेत्र विज्ञान का क्षेत्र है इसलिए चिकित्सक की साक्ष्य को संपुष्टिकारक साक्ष्य की श्रेणी में रखा गया है। रणछोड़सिंह विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य 1984 में माननीय उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा अवधारित किया गया है कि चिकित्सक साक्षी तथ्य का साक्षी है और उसकी साक्ष्य को भी अन्य साक्षियों की तरह ही विचार में लिया जाना चाहिए। चिकित्सक की साक्ष्य एक व्यक्ति की शारीरिक दशा, रोग की प्रकृति, चोटों की प्रकृति तथा उस हथियार की प्रकृति को दर्शित कर सकती है जिससे वह चोट कारित की गई है। चिकित्सक की साक्ष्य को भी अन्य साक्षियों की साक्ष्य की तरह ही विचार में लिया जाता है। उसकी साक्ष्य भी अखंडनीय नहीं होती है। यह निर्विवादित तथ्य है कि अभियोजन साक्ष्य का एकमात्र भाग मेडिकोलीगल पोस्टमार्टम परीक्षण होता है और इसीलिए यह आवश्यक है कि ऐसा शव परीक्षण एक पूर्णत: प्रशिक्षित एवं अनुभवी चिकित्सक द्वारा किया जावे। शव परीक्षण प्रतिवेदन के अतिरिक्त ऐसे चिकित्सक की न्यायालय के समक्ष अंकित करायी गई साक्ष्य ही सुसंगत एवं सारभूत साक्ष्य की श्रेणी में आती है। न्यायालय के मत में, ऐसा चिकित्सक, जिसने मृतिका के शव को देखा और उसका परीक्षण किया, एकमात्र सक्षम व्यक्ति होता है जो चोटों की प्रकृति एवं मृत्यु का कारण बताने में तथा अपना अभिमत प्रकट करने में सक्षम होता है किंतु जहां ऐसे चिकित्सक की सक्षमता के विषय में ही आधारभूत प्रश्न आक्षेपित हो वहां न्यायालय को यह निर्धारित करना होगा कि ऐसे चिकित्सक की साक्ष्य पर विश्वास किया जाएं या नहीं। डॉक्टर रेखा चौहान के कथन से यह प्रकट हुआ है कि मृतिका दुर्गादेवी के शव परीक्षण के 06 घंटे पूर्व उसे घासलेट से जल जाने के कारण मृत अवस्था पर अस्पताल लाया गया था जहां उसकी एम.एल.सी. करने के पश्चात शव परीक्षण किया गया। बाल साक्षी कुमारी कोमल ओर कुमारी हेमलता ने अपनी साक्ष्य में आरोपी देवनारायण द्वारा मृतिका दुर्गादेवी को पत्थर से चोट पहुंचाकर एवं उसके गले पर पत्थर रखकर ऊपर से अपने पैर से गला दबाकर उसकी मृत्यु कारित करना बताया है किंतु इस संबंध में डॉक्टर रेखा चौहान का कहना है कि मृतिका का शव अत्यधिक जला होने के कारण उसके शरीर पर बाह्य चोट होने के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी जा सकती। आरोपी द्वारा पत्थर से गला दबाने के संबंध में अन्य कोई तथ्य भी अभिलेख पर नहीं है। ऐसी स्थिति में इस बावत विचार किया जाना उचित नहीं होगा। न्यायदृष्टांत अब्दुल सईद विरूद्ध मध्यप्रदेश राज्य 2010 में अवधारित किया गया है कि मौखिक और मेडिकल साक्ष्य में भिन्नता की स्थिति में, जहां मेडिकल साक्ष्य द्वारा मौखिक साक्ष्य की समस्त प्रकार की संभावनाओं को निरस्त किया जा रहा हो वहां मौखिक साक्ष्य अविश्वसनीय मानी जा सकती है और पूर्णत: भिन्नता होने पर मेडिकल साक्ष्य की महत्ता बढ़ जाती है। संदर्भ कपिलदेव मंडल विरूद्ध बिहार राज्य 2008, साहेबराव मोहन बोरड विरूद्ध महाराष्ट्र राज्य 2011, माफाभाई नागरभाई रावल विरूद्ध गुजरात राज्य 1992 को उद्धरित करते हुए निर्धारित किया गया कि केवल ऐसा चिकित्सक जिसने मृतक की परीक्षा करके उसका शव परीक्षण किया, चोटों की प्रकृति एवं मृत्यु का कारण बताने के लिए सक्षम साक्षी होगा जब तक कि कोई अंतर्निहित त्रूटि न हो, तब तक न्यायालय चिकित्सक की राय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। डॉक्टर रेखा चौहान के कथन से तथा इस निर्णय की कंडिका 9 में इस आशय के निष्कर्ष अंकित किए जा चुके है कि मृतिका की मृत्यु उसके स्वघाती कृत्य का परिणाम नहीं है और मृतिका की मृत्यु मानवीय कृत्य से हुई है। मृतिका की मृत्यु घासलेट डालने के कारण होना भी प्रमाणित है। अब विचार यह करना है कि क्या मृतिका की मृत्यु आरोपी देवनारायण द्वारा उसकी हत्या करने के आशय से की गई है यद्यपि घटना स्थल पर मृतिका की जली हुई लाश के अतिरिक्त अन्य कोई साक्ष्य नहीं पायी गई फिर भी इसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अंतर्गत विचार में नहीं लिया जा सकता। मृतिका की दोनों पुत्रियां घटनास्थल पर मौजूद थी और दोनों ही साक्षियो ने देवनारायण और उसकी पत्नी दुर्गादेवी के बीच चांदी की रकमों के लिए जाने के संबंध में विवाद होने का कथन दिया है। साक्षी सोरमबाई और पन्नाबाई ने भी दोनों के बीच चांदी की रकम के संबंध में विवाद होना बताया है। जहां तक साक्षीगण कुमारी कोमल और कुमारी हेमलता के बाल साक्षी होने का संबंध है न्यायदृष्टांत स्टेट ऑफ यू.पी. विरूद्ध कृष्णा सारवर 2010 में यह अवधारित किया गया है कि एक बाल साक्षी तथ्यों को याद नहीं रख सकता ऐसा कोई कानून या नियम नहीं है कि बालक असामान्य घटनाओं को जो उसके जीवन में घटित होती है उसे बचे हुए जीवन में कभी नहीं भूलता एक अल्पवय बालक के मन में किसी के प्रति द्वेष या बुराई नहीं होती है अतैव घटना दिनांक से कथन लेखबद्ध होने के बीच में आरोपी को बिना किसी उचित कारण के गंभीर अपराध में बाल साक्षी क्यों फंसाना चाहता है इस तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए। प्रस्तुत प्रकरण में भी यही तथ्य उल्लेखनीय है कि साक्षीगण कोमल और हेमलता के पिता आरोपी देवनारायण द्वारा उसकी पत्नी और बच्चों की माता दुर्गादेवी को जलाने का कृत्य किया गया। ऐसी घटना को बाल साक्षियों द्वारा भूल जाने का कोई तथ्य प्रकट नहीं होता। दोनों ही बाल साक्षियों ने उससे किए गए प्रश्नों को समझने और उनका युक्तियुक्त उत्तर देने में अपनी सक्षमता प्रकट की है और साक्षीगण की साक्ष्य बाल साक्षियों की साक्ष्य होने के बाद भी तथ्यों से मेल खाती है और विश्वसनीय होना प्रतीत होती है।