Touch Screen | टच स्क्रीनः-
वर्तमान में हम देखते है कि कई मोबाईल, कम्प्यूटर तथा लेपटॉप Touch Screen सुविधा के साथ उपलब्ध है।
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Toggleटच स्क्रीन की सुविधा से कोई भी यूजर अपनी अंगुलियों से कम्प्यूटर से इंटरेक्ट कर सकता है।
माउस, टच स्क्रीन तथा की-बोर्ड जैसे इनपुट डिवाईस के स्थान पर एक अच्छा विकल्प है, जो कि जी.यू.आई अथवा ग्राफिकल यूजर इंटरफेस में बहुत ही अच्छी सुविधा प्रदान करता है।
टच स्क्रीन भी एक प्रकार की इनपुट डिवाईस है, इसके माध्यम से स्क्रीन को टच करके कम्प्यूटर को इन्स्ट्रक्शन के रूप में इनपुट दिया जाता है।
यह सामान्यतः एक माउस की तरह कार्य करता है।
साथ ही इसका उपयोग की-बोर्ड के स्थान पर भी किया जाता है,
इसमें एक वर्चुअल की-बोर्ड होता है, जिसमें फिजिकल की-बोर्ड की तरह ही बटने होती है,
वर्चुअल की-बोर्ड | Vertual Keyboard पर स्क्रीन पर टच अथवा टेप कर हम टाईपिंग कर सकते है।
हम टच स्क्रीन को केवल इनपुट डिवाईस के रूप में समझते है।
लेकिन वास्तव में यह एक इनपुट तथा आउटपुट डिवाईस है,
वह इसलिए क्योंकि यह यूजर से टच के द्वारा इनपुट लेती है,
साथ ही कम्प्यूटर की प्रोसेसिंग के बाद आउटपुट को प्रदर्शित भी करती है।
टच स्क्रीन फीचर्स वाले डिवाईस में किए जा सकने वाले कार्यः-
Touch Screen टैक्नोलॉजी को सपोर्ट करने वाली सभी डिवाईस एक जैसे फंक्शन का उपयोग नहीं करती है, लेकिन टच स्क्रीन द्वारा किए जाने वाले कार्य एक जैसे ही होते है।
टच स्क्रीन को हम निम्न कार्यो हेतु उपयोग करते हैः-
Tap –
टच स्क्रीन में किसी एप अथवा किसी ऑब्जेक्ट को सेलेक्ट करने के लिए या ओपन करने के लिए एक बार अंगुली से स्क्रीन को टच किया जाता है,
इसे टेप कहते है। यह उसी प्रकार कार्य करता है, जैसे एक माउस क्लिक करता है।
Double Tap –
टच स्क्रीन में डबल टेप पर होने वाले कार्य अलग-अलग प्रोग्राम अथवा स्क्रीन के लिए अलग-अलग होते है।
जैसे यदि हम कोई इमेज देख रहे हो और उस इमेज पर डबल टेप करें तो इमेज जूम हो जाती है अर्थात बडी हो जाती है।
इसी प्रकार यदि हम किसी आईकन पर डबल टेप करें तो उससे संबंधित एप्लिकेशन ओपन हो जाती है।
इसी प्रकार यदि किसी टाईप किए गए टैक्स्ट पर डबल टेप किया जाता है, तो पूरा शब्द सेलेक्ट हो जाता है।
यह उसी तरह कार्य करता है, जैसे माउस का लेफ्ट बटन एक साथ दो बार दबाने पर होता है।
Touch and hold –
टच स्क्रीन पर अंगुली को टच करना तथा उसे ऐसे ही होल्ड रखना अर्थात हटाना नहीं, टच एण्ड होल्ड अथवा लोंग प्रेस कहलाता है।
जैसे यदि हम किसी आईकन पर कुछ देर अंगुली टच करे रहे, तो वह आइकन सेलेक्ट हो जाता है,
उसे ड्रेग करके हम स्क्रीन पर एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकते है।
इसी प्रकार हम किसी आईकन या विकल्प पर लोंग प्रेस करते है,
तो उस आईकन अथवा विकल्प से संबंधित नए विकल्प अर्थात कांटेक्स्ट मेन्यू ओपन हो जाता है।
यह उसी तरह कार्य करता है, जैसे माउस का राईट बटन कार्य करता है।
Drag –
जब हम टच एण्ड होल्ड के द्वारा किसी आईकन को सेलेक्ट करते है,
तब हम उसे टच किए हुए, स्क्रीन पर एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकते है, इसे ही ड्रेग कहते है।
इसका उपयोग टैक्स्ट को सेलेक्ट करने के लिए भी किया जाता है।
Swipe –
माउस का स्क्रॉल बटन के द्वारा पेज को स्क्रॉल किया जाता है।
टच स्क्रीन में यह कार्य हमें अंगुली को स्क्रीन पर खिसकाकर अथवा स्वाइप करके कर सकते है।
जैसे हम जब कुछ इमेज देख रहे होते है, तब हम दाएं से बाएं तथा बाएं से दाएं स्वाइप करके दूसरी इमेजों को देख सकते है।
Pinch –
जब हमें स्क्रीन अथवा किसी डॉक्यूमेंट जैसे इमेज, एम.एस. वर्ड फाईल आदि को जूम-इन अर्थात बडा तथा जूम-आउट अर्थात छोटा करना होता है,
तब हम पिंच का उपयोग करते है, इसमें हम दो अंगुलियों को स्क्रीन पर एक साथ उपयोग करते है।
जब हमें जूम अथवा जूम-इन करना होता है, तो दोनों अंगुलियों को स्क्रीन पर एक साथ रखकर उन्हें स्वाईप करते हुए एक दूसरे से दूर ले जाते है।
इसी प्रकार जब जूम-आउट करना होता है, तब दोनों अंगुलियों को स्क्रीन पर दूर-दूर रखते है, तथा स्वाईप करते हुए दोनों अंगुलियों को पास लाते है।
माउस तथा टच स्क्रीन में भिन्नता | Difference between Mouse and Touch Screen:-
हमने ऊपर पढा कि टच स्क्रीन माउस की तरह कार्य करता है, लेकिन माउस तथा टच स्क्रीन में बहुत सारे अंतर भी है।
जैसे टच स्क्रीन तभी इनपुट प्राप्त करती है, जब हम अंगुलियों से टच स्क्रीन को टच करते है, जबकि माउस अलग-अलग प्रकार से इनपुट प्राप्त करता है,
जैसे माउस बटन क्लिक करने पर, माउस की स्क्रॉल बटन को घुमाने पर तथा माउस को मूव करके।
इसके अलावा माउस की एक प्रॉपर्टी होती है हूवर।
जब हम किसी आईकन, फाईल अथवा ऑब्जेक्ट पर माउस कर्सर को लेकर जाते है, तो इसे हूवर कहते है, माउस हूवर होते ही, उस आईकन, फाईल अथवा ऑब्जेक्ट से संबंधित डीटेल दिखाई देने लगती है,
परंतु यह सुविधा टच स्क्रीन में नहीं मिलती है,
क्योंकि टच स्क्रीन में हूवर का कोई विकल्प नहीं होता है, सीधे ही टच अर्थात टेप का विकल्प होता है।
इसी प्रकार जब हम किसी लिंक पर माउस कर्सर लेकर जाते है,
तो वह लिंक दिखाई देने लगती है, लेकिन लिंक तब तक ओपन नहीं होती है, जब तक कि उसे क्लिक न किया जाए।
वही टच स्क्रीन में लिंक पर टच करने पर लिंक ओपन हो जाती है।
वर्तमान में ऐसे कई प्रोग्राम अथवा साफ्टवेयर बन रहे है,
जिनमें पहले टेप को हूवर तथा दूसरे टेप को क्लिक के रूप में इनपुट लिया जाता है।
टच स्क्रीन के फायदें | Benefits of Touch Screen:-
टच स्क्रीन का उपयोग दिनोदिन बढता ही जा रहा है, इसका कारण इसके फीचर्स ही है।
इसमें एक ही स्क्रीन से सारे कार्य किए जा सकते है,
न किसी बटन की आवश्यकता है, और न ही किसी अन्य डिवाईस की आवश्यकता है।
इसके मुख्य फायदे निम्न हैः-
- टच स्क्रीन डिवाईस में सारे फीचर्स होने से डिवाईस का आकार छोटा करने में मदद मिलती है, क्योंकि यदि बटन का उपयोग होता तो, बटन के लिए अलग से स्पेस चाहिए होता।
- इसके अलावा यदि किसी डिवाईस में स्क्रीन तथा बटन होने पर उसे बनाने के लिए अधिक समय लगता है, साथ ही इसमें खर्च अधिक होता है, वहीं बिना किसी बटन के केवल एक ही स्क्रीन बनानी हो तो समय भी कम लगता है, साथ ही खर्च भी कम होता है।
टच स्क्रीन में उपयोग होने वाली टैक्नोलॉजी | Types of Touch Screen Technology:-
सभी टच स्क्रीन का कार्य एक ही प्रकार होता है, लेकिन इनमें टच फीचर के लिए जो टैक्नोलॉजी उपयोग की जाती है,
वह अलग-अलग डिवाईस के लिए अलग-अलग हो सकती है।
जैसे कुछ टच स्क्रीन केवल अंगुली के स्पर्श से ही कार्य करती है,
वहीं कई अन्य टच स्क्रीन विभिन्न प्रकार के टूल के द्वारा भी कार्य करते है।
सामान्यतः निम्न टच स्क्रीन टैक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता हैः-
Resistive Touch Technology:-
इस टैक्नोलॉजी से बनी टच स्क्रीन में स्क्रीन metallic electrically conductive and resistive layer से coated अथवा लेपित होता है,
जो कि स्क्रीन पर अंगुली अथवा किसी अन्य वस्तु से टच करने पर दबाव को डिटेक्ट करता है।
resistive touch screen एक ग्लास अर्थात कांच पेन तथा एक फिल्म स्क्रीन से मिलकर बनी होती है, तथा ग्लास पेनल व फिल्म दोनों ही मेटालिक लेयर से कवर होती है,
तथा दोनों के बीच थोडा सा गेप होता है, अर्थात दोनों एक दूसरे से थोडी दूरी पर होते है, यह दूरी बहुत ही कम होती है।
जैसे ही कोई यूजर टच स्क्रीन को टच करता है अर्थात स्क्रीन पर दबाव डालता है, वैसे ही ये दोनों मेटालिक लेयर एक दूसरे से कनेक्ट होती है,
तथा इससे इलेक्ट्रीकल फ्लो होने लगता है, तथा जहां इलेक्ट्रीकल फ्लो में बदलाव हुआ है, उसे डिटेक्ट कर लिया जाता है।
इस टच स्क्रीन का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है।
लाभः-
1- इसे अंगुलियों से, ग्लोव्ड हेंड अर्थात surgical ग्लब्स पहने हुए तथा इलेक्ट्रीकल पेन आदि से एक्टिव किया जा सकता है अर्थात चलाया जा सकता है।
- इस टैक्नोलॉजी से बनी स्क्रीन की कीमत कम होती है।
- इसके द्वारा कम बिजली का उपयोग किया जाता है।
- यह धूल, पानी, तेल, ग्रीस तथा नमी से खराब नहीं होती है।
हानिः-
- इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता तथा इमेज क्लेरिटी अन्य टैक्नोलॉजी से थोडी कम होती है।
- इसमें बाहरी पॉलिस्टर फिल्म नुकीली वस्तु से अथवा स्क्रेच से खराब हो सकती है।
Capacitive Touch Technology:-
इस टैक्नोलॉजी से बनी टच स्क्रीन में स्क्रीन electrically-charged material layer से coated अथवा लेपित होता है, जो स्क्रीन पर लगे सर्किट के द्वारा मॉनिटर किया जाता है।
जब इस Capacitive Touch Screen को टच किया जाता है तो टच किए गए स्थान पर इलेक्ट्रीकल चार्ज बदल जाता है, अथवा थोडा कम हो जाता है, जिससे सर्किट को स्क्रीन टच की लोकेशन अर्थात टच पाइंट की जानकारी होती है।
इस प्रकार की स्क्रीन का उपयोग अंगुलियों (bare finger) से अथवा स्पेशल रूप से डिजाईन किया हुआ केपेसिटिव स्टाईलस का प्रयोग करना होता है।
यह स्क्रीन पानी अथवा धूल से खराब नहीं होती है, साथ ही इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता बहुत अच्छी होती है।
इसके दो प्रकार हैः-
Surface Capacitive Touch Screen Technology:-
इस केपेसिटिव टच स्क्रीन में ग्लास पेन के ऊपर एक ट्रांसपेरेंट इलेक्ट्रॉड लेयर होती है, जिसके ऊपर प्रोटेक्टिव कवर लगा होता है।
जब इस स्क्रीन को अंगुलियों के द्वारा टच किया जाता है, जो यह ह्यूमन बॉडी की स्थित इलेक्ट्रीकल क्षमता पर रिएक्ट करता है, तथा स्क्रीन से कुछ इलेक्ट्रीकल चार्ज अंगुलियों में ट्रांसफर हो जाता है,
तथा इसमें स्क्रीन के कोनो पर लगे सर्किट अर्थात सेंसर, इलेक्ट्रीकल चार्ज में हुई इस कमी को डिटेक्ट कर टच पाइंट का पता करते है।
लाभः-
1- इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता तथा इमेज क्लेरिटी Resistive Touch Screen की तुलना में अच्छी होती है।
- यह ज्यादा दिनों तक उपयोग की जा सकती है।
- यह धूल तेल, ग्रीस, पानी से खराब नहीं होती है।
हानि:-
1- इसका उपयोग केवल अंगुलियों (bare finger) से कर सकते है अथवा केपेसिटिव स्टाइलस के द्वारा कर सकते है।
2- इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंटरफेरेंस तथा रेडियो फ्रिक्वेंसी इंटरफेरेंस से इस पर असर पड़ता है।
- कई बार हम मोबाईल का उपयोग करते हुए देखते है, कि यदि हमनें हाथों में सर्जिकल ग्लब्स पहने हो तो हम टच स्क्रीन का उपयोग नहीं कर पाते, वहां Surface Capacitive touch screen का उपयोग होता है।
Projected Capacitive (P-Cap) Touch Screen Technology:-
यह भी सर्फेस केपेसिटिव की तरह ही होता है, लेकिन इसमें दो अन्य लाभ होते है।
पहला यह कि इस स्क्रीन को अंगुलियों (bare finger) के साथ ही सर्जिकल अथवा कॉटन ग्लब्स पहले हुए भी चला सकते है।
दूसरा इस स्क्रीन में मल्टी टच की सुविधा मिलती है, अर्थात हम एक साथ एक से अधिक अंगुलियों का उपयोग कर पाते है।
इस प्रकार की स्क्रीन में ग्लास शीट के ऊपर ट्रांसपेरेंट इलेक्ट्रॉड फिल्म तथा एक आई.सी. अथवा इंटीग्रेटेड सर्किट चिप लगी होती है, जो कि एक थ्री-डायमेंसन इलेक्ट्रिक फिल्ड बनाते है।
जब कोई इस स्क्रीन को टच करता है, तो इलेक्ट्रीक करंट में बदलाव होता है,
जिसे कम्प्यूटर द्वारा डिटेक्ट कर टच पाइंट का पता लगाया जाता है।
लाभः-
- इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता तथा इमेज क्लेरिटी बहुत अच्छी होती है।
2- Resistive Screen की तुलना में स्क्रेचिंग के लिए अधिक सुरक्षित होती है।
- यह धूल, तेल, ग्रीस तथा नमी से खराब नहीं होती है।
- एक से अधिक अंगुलियों के एक साथ टच को रिकाग्नाइज कर सकती है अर्थात मल्टी टच को सपोर्ट करती है।
हानिः-
- यह केवल अंगुलियों से अथवा बहुत थिन सर्जिकल अथवा कॉटन ग्लब्स पहने हुए ही उपयोग किया जा सकता है।
- इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंटरफेरेंस तथा रेडियो फ्रिक्वेंसी इंटरफेरेंस से इस पर असर पड़ता है।
Surface Acoustic Wave (SAW) Touch Technology:-
इस प्रकार की स्क्रीन में अल्ट्रासोनिक तरंगों का उपयोग किया जाता है।
इसमें piezoelectric transducers एवं receivers स्क्रीन के किनारों पर लगे होते है, जो अल्ट्रासोनिक तरंगों की एक अदृश्य ग्रिड बनाते है,
जैसे ही कोई स्क्रीन को टच करता है, तो उस स्थान की तरंगे अवशोषित हो जाती है,
तथा तरंगो के इन बदलाव के द्वारा ही कंट्रोलर अथवा रिसिवर, स्क्रीन पर टच को डिटेक्ट करता है।
यह टैक्नोलॉजी अन्य दोनो टैक्नोलॉजी से एडवांस है, परंतु यह हार्ड मटेरियल के साथ उपयोग नहीं की जा सकती है,
साथ ही बाहरी तत्वों का भी इस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, अर्थात यह धूल अथवा पानी से खराब हो सकती है।
इसे अंगुलियों से, सर्जिकल अथवा कॉटन के पतले ग्लबस पहने हुए अथवा डिजीटली डिजाईन्ड स्टायलस के द्वारा चलाया जा सकता है।
लाभः-
- इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता तथा इमेज क्लेरिटी बहुत अच्छी होती है।
2- Resistive, capasitive Screen की तुलना में स्क्रेचिंग के लिए अधिक सुरक्षित होती है।
- यह धूल, तेल, ग्रीस तथा नमी से खराब नहीं होती है।
- इसे अधिक समय तक उपयोग किया जा सकता है।
हानिः-
1- इसे नुकीली वस्तु जैसे किसी पेन अथवा हमारे हाथ के नाखून आदि से नहीं चलाया जा सकता है।
Infrared | IR Touch Technology:-
इस प्रकार की स्क्रीन के किनारो पर इन्फ्रारेड एमिटर (एल.ई.डी. अथवा लाईट एमिटिंग डायोड) तथा रिसिवर (फोटो ट्रांजिस्टर) लगे होते है,
इन्फ्रारेड एमिटर एक अदृश्य ग्रिड के रूप में पूरी स्क्रीन के ऊपर लाईट बीम को फैला देता है।
जैसे कोई स्क्रीन को टच करता है, तब इस लाईट बीम में अवरोध अथवा इन्ट्र्प्शन होता है तथा इस अवरोध को फोटो ट्रांजिस्टर रिसीव करता है,
तथा स्क्रीन के X तथा Y कोर्डिनेट्स को कंट्रोलर को भेजता है, जिससे टच पाइंट का पता चलता है।
लाभः-
- इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता तथा इमेज क्लेरिटी अन्य सभी टैक्नोलॉजी से अच्छी होती है।
- इसे लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता है, इस स्क्रीन के खराब होने की संभावना बहुत कम होती है।
- यह स्क्रीन स्क्रेच रेसिस्टेंस के साथ उपलब्ध होती है अर्थात इस पर स्क्रेच का प्रभाव बहुत नगण्य होता है।
- यह मल्टी टच को सपोर्ट करती है, अर्थात एक साथ स्क्रीन पर एक से अधिक अंगुलियों का प्रयोग किया जा सकता है।
- इसकी एक अन्य खासियत यह है कि यह हाथ की हथेली के टच को रिकाग्नाइज कर सकती है तथा उस पर एक्टिव नहीं होती है।
हानिः-
- इसमें स्क्रीन के ऊपर इन्फ्रारेड बीम होती है, इसलिए यह अचानक किसी टच से भी एक्टिव हो सकती है।
- 2. धूल, तेल, ग्रिस आदि से इसके खराब होने की संभावना रहती है।
- इसकी कीमत बहुत अधिक होती है।
- इस पर हाई क्वालिटी की लाईट सीधे पड़ने पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
Dispersive Signal Touch Technology:-
इस टच टैक्नोलॉजी में टच पाइंट का निर्धारण मैकेनिकल एनर्जी के आधार पर किया जाता है, जो कि अंगुली अथवा किसी ऑब्जेक्ट द्वारा स्क्रीन को टच करने पर उत्पन्न होती है।
अन्य टैक्नोलॉजी में जहां स्क्रीन के टच पाइंट का पता स्क्रीन की ऊपरी सतह पर फैली लाईट बीम अथवा तरंगो के अवरोध से किया जाता है,
वही इस टैक्नोलॉजी में स्क्रीन के कोंटेक्ट से टच पाइंट का पता किया जाता है।
लाभः-
- इसी टच पाइंट डिटेक्ट करने की गति बहुत अधिक होती है।
- इसकी टच को रिकोग्नाइज करने की शुद्धता बहुत अच्छी होती है।
- इस स्क्रीन पर स्क्रेच अथवा किसी डेमेज से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- इसे अंगुली, पेंसिल, नाखून अथवा किसी अन्य प्रकार के स्टाईलस के द्वारा उपयोग किया जाता सकता है।
- इसका उपयोग बडे साइज की स्क्रीन बनाने हेतु भी किया जा सकता है।
हानिः-
- इसके द्वारा एक बार टच करने के बाद मोसनलेस अर्थात गतिहीन टच को रिकाग्निाईज नहीं किया जा सकता है।
Acoustic Pulse Recognition Touch Technology:-
इस टैक्नोलॉजी में अकौस्टिक वेव्स अर्थात साउंड वेव्स के द्वारा टच को डिटेक्ट किया जाता है।
इस प्रकार की टैक्नोलॉजी उपयोग करने वाली डिवाईस में जैसे ही हम स्क्रीन को टच करते है,
वैसे ही डिवाईस सब्ट्रेक्ट लेयर में अकौस्टिक वेव्स अर्थात साउंड वेव्स क्रिएट करती है,
जिसे ट्रांसड्यूसर द्वारा डिटेक्ट कर लिया जाता है, जो कि स्क्रीन के किनारो पर लगे होते है।
- इस स्क्रीन को अंगुली (bare finger) सर्जिकल ग्लब्स तथा स्टाइलस के द्वारा उपयोग किया जा सकता है।
- इस टैक्नोलॉजी को उपयोग करने वाली डिवाईस हाईली रिस्पोंसिव होती है।
- यह स्क्रीन लंबे समय तक उपयोग की जा सकती है।
Optical Imaging Touch Technology:-
इस प्रकार की स्क्रीन में टच डिटेक्ट करने के लिए इमेज सेंसर तथा इन्फ्रारेड ब्लेक लाइट का उपयोग होता है।
इसमें आई.आर. अर्थात इन्फ्रारेड लाईड टच स्क्रीन के विपरीत दिशा में प्रोजेक्ट होती है।
जैसे ही स्क्रीन को टच किया जाता है, इन्फ्रारेड लाईट के फ्लो में अवरोध उत्पन्न होता है,
तथा कंट्रोलर द्वारा टच पाइंट का पता लगाया जाता है।
लाभः-
- इसे अंगुली, ग्लब्स, स्टाईलस अथवा किसी भी आब्जेक्ट के द्वारा उपयोग किया जा सकता है।
- इसे लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता है।